श्री ओमकारेश्वर-परमेश्वर द्वादश 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रसिद्ध चौथा ज्योतिर्लिंग

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श्री ओमकारेश्वर-परमेश्वर द्वादश 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रसिद्ध चौथा ज्योतिर्लिंग

सावन महीना चल रहे है इस दौरान अपनी-अपनी मनोकामनाएं लेकर लाखों की संख्या में रोजाना शिव भक्त दर्शन करने पहुंचे हैं

सी एन आई न्यूज़ से संजू महाजन

मध्यप्रदेश जिला-खंडवा:- द्वादश 12 ज्योतिर्लिंगों में से मध्य प्रदेश में 2 ज्योतिर्लिंग विराजमान है, श्री महाकालेश्वर श्री ओमकारेश्वर-परमेश्वर
आई आपको ले चलते हैं जिला खंडवा –
इंदौर शहर से 80 किलोमीटर की दूर श्री ओमकारेश्वर श्री परमेश्वर एक ही भगवान शिव यहां दो स्वरूप ज्योतिर्लिंग में विराजमान हैं, ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के किनारे ओम् आकर वाली ऊंची पहाड़ी में मौजूद हैं इसी वजह से इनको श्री ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है, श्री परमेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के दक्षिण तट पर स्थित है,परमेश्वर लिंग को ही अमलेश्वर ममलेश्वर भी कहा जाता है


किंवदंती-ग्रंथ पुराणों में सुनने व देखने को मिलता है- खंडवा जिले के शिवपुरी नामक द्वीप में केवल एक ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो नर्मदा नदी के उत्तरी तट पर टापू में स्थित है,ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग ऐसा कहा जाता है कि ये तट ॐ के आकार का है मंदिर की इमारत पांच मंजिला है यह ज्योतिर्लिंग पंचमुखी है!


लोगों का मानना है कि भगवान शिव तीनों लोको का भ्रमण करके यहाँ विश्राम करते हैं,तभी रात्रि में यहाँ शिव भगवान जी की शयन आरती की जाती है भक्तगणों के सारे संकट यहाँ दूर हो जाते हैं ऐसा भी कहा जाता है कि आप चाहे सारे तीर्थ कर लें लेकिन ओंमकारेश्वर के दर्शन करे बिना अधूरे हैं इसीलिए भक्तगण दूर-दूर से यहाँ भारी संख्या में आते हैं।


शिवपुराण के कोटीरूद्रसंहिता के 18 अध्याय में वर्णन(उल्लेख) है- श्रीहरि नारायण भक्त नारद जी भ्रमण करते हुए विंध्याचल पर्वत पर पहुंचे वहां पर्वतराज विंध्याचल ने नारद जी का स्वागत किया और यह कहते हुए कि मैं सर्वगुण संपन्न हूं मेरे पास सब कुछ है हर प्रकार की सम्पदा है,नारद जी विंध्याचल की अभिमान युक्त बातें सुनकर,कहा कि तुम्हारे पास सब कुछ है किन्तु तुम सुमेरू पर्वत से ऊंचे नहीं हो उस पर्वत का भाग देवताओं के लोकों तक पहुंचा हुआ है और तुम्हारे शिखर का भाग वहां तक कभी नहीं पहुँच पायेगा ऐसा कह कर नारद जी वहां से चले गए लेकिन वहां खड़े विंध्याचल को बहुत दुःख हुआ और मन ही मन शोक करने लगा तभी उसने शिव भगवान की आराधना करने का निश्चय किया जहाँ पर साक्षात् ओमकार विद्यमान है,वहां पर उन्होंने शिवलिंग स्थापित किया और लगातार प्रसन्न मन से 6 महीने तक पूजा की इस प्रकार शिव भगवान जी अतिप्रसन्न हुए और वहां प्रकट हुए उन्होंने विंध्य से कहा कि मैं तमसे बहुत प्रसन्न हूं तुम कोई भी वरदान मांग सकते हो तब विंध्य ने कहा कि आप सचमुच मुझ से प्रसन्न हैं तो मुझे बुद्धि प्रदान करें जो अपने कार्य को सिद्ध करने वाले हो तब शिव जी ने उनसे कहा कि मैं तुम्हे वर प्रदान करता हूं कि तुम जिस प्रकार का कार्य करना चाहते हो वह सिद्ध हो वर देने के पश्चात वहां देवता और ऋषि भी आ गए उन सभी ने भगवान शिव जी की पूजा की और प्रार्थना की कि हे प्रभु आप सदा के लिए यहाँ विराजमान हो जाईए शिव भगवान अत्यंत प्रसन्न हुए लोक कल्याण करने वाले भगवान शिव ने उन लोगों की बात मान ली और वह ओमकार लिंग दो लिंगों में विभक्त हो गया जो पार्थिव लिंग विंध्य के द्वारा बनाया गया था वह परमेश्वर लिंग के नाम से जाना जाता है और भगवान शिव जहाँ स्थापित हुए वह लिंग ओमकार लिंग कहलाता है परमेश्वर लिंग को अमलेश्वर ममलेश्वर लिंग भी कहा जाता है तब से ये दोनों शिवलिंग जगत में प्रसिद्ध हुए, परमेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर पत्थर से बना हुआ है पत्थर की खूबसूरत कारीगरी और दीवारों पर पत्थर की मूर्तियां बनाई गई जो बहुत ही आकर्षण है,और गर्भ गृह के बीच में शिवलिंग विराजमान है! यहां प्रतिदिन अहिल्याबाई होलकर ने मिट्टी से शिवलिंग तैयार करके नर्मदा नदी में विसर्जित किए गए हैं!


जानकारी के अनुसार-इसी स्थान पर राजा मान्धाता ने इस पर्वत पर घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन किया था तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हुए और शिव जी प्रकट हुए तब राजा मान्धाता ने शिव भगवान को सदा के लिए यहीं विराजमान होने के लिए कहा तब से शिव जी विराजमान है इसीलिए इस नगरी को ओंकार–मान्धाता भी कहते हैं इस क्षेत्र में 68 तीर्थ स्थल हैं और ऐसा कहा जाता है कि यहाँ 33 करोड़ देवी-देवता निवास करते हैं यहाँ नर्मदा जी में स्नान करने का विशेष महत्त्व है नर्मदा जी के दर्शन मात्र से ही आपके सारे पाप दूर हो जाते हैं।
कहां जाता है एक बार देवों और दानवों के बीच युद्ध हुआ दानवों ने देवताओं को पराजय कर दिया देवता इस बात को सह न सके और हताश होकर शिव भगवान से विनती पूजा-अर्चना की उनकी भक्ति को देखकर शिव भगवान जी अत्यंत प्रसन्न हुए और ओंमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग रूप में प्रगट हुए और दानवों को पराजय किये, इसी मंदिर में कुबेर ने भगवान शिव जी का शिवलिंग बनाकर तपस्या की थी उनकी इस भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें धनपति बनाया था भगवान शिव जी ने अपने बालों से काबेरी नदी उत्पन्न की थी जिसमें कुबेर जी ने स्नान किया था यही काबेरी नदी ओमकार पर्वत की परिक्रमा करते हुए नर्मदा नदी में मिलती हैं इसे ही नर्मदा-काबेरी का संगम कहते हैं।


सावन का महीना चल रहा है इस दौरान श्रद्धालुभक्त लाखों की संख्या में रोजाना भगवान शिव के दर्शन करने भक्त अपनी-अपनी मनोकामनाएं लेकर मंदिर पहुंच रहें हैं और सावन में शिव जी की पूजा का काफी महत्व है सावन में दर्शन मात्र से ही सभी इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है ओम् नमः शिवाय!

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