अरविन्द तिवारी रिपोर्टर

रायपुर – भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी यानि आज ही की तिथि में बहुला चौथ व्रत रखा जाता है , इस चतुर्थी को बहुला चतुर्थी कहते हैं। इस तिथि में विवाहित महिलायें अपने पुत्रों की रक्षा के लिये इस व्रत को रखती हैं। वस्तुत: यह गौ पूजा और सत्य वचन की मर्यादा का पर्व है। माता की भांँति अपना दूध पिलाकर गौ माता मनुष्य की रक्षा करती है, उसी कृतज्ञता के भाव से इस व्रत को सभी करते हैं। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि इस व्रत को रखने से संतान के सारे कष्ट अपने आप ही शीघ्र खत्म हो जाते हैं। यह व्रत नि:संतान को संतान तधा संतान को मान सम्मान एवं ऐश्वर्य प्रदान करने वाला माना जाता है , मन की इच्छायें पूर्ण होती हैं , शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है , धन-धान्य में वृद्धि होती है। बहुला चौथ की पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन स्त्रियां अपने बच्चों की खुशहाली और लंबी उम्र के लिये कुम्हारों द्वारा मिट्टी से भगवान शिव-पार्वती, कार्तिकेय-श्रीगणेश , गाय तथा सिंह की प्रतिमा बनवाती हैं. इसके बाद मंत्रोच्चारण तथा विधि-विधान के साथ इस प्रतिमा को स्थापित करके उसकी पूजा-अर्चना की जाती है। पूजा में भगवान को भोग लगाने के लिये कई तरह के पकवान बनाये जाते हैं जिसे बाद में गाय और बछड़े को खिलाया जाता है। व्रत रखने वाली स्त्री इस दिन बहुला कथा का श्रवण , पाठ भी करती हैं। इस व्रत को रखने और सुनने से अपार धन व सभी तरह के ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है , घर परिवार में सुख शांति आती है , साथ ही यह व्रत जन्म मरण के चक्र से मुक्ति भी दिलाता है। इस व्रत में गाय और बछड़े के पूजन का बड़ा महत्व बताया गया है। इस दिन गाय के दूध या उससे बनी कोई चीज उपभोग नही करते हैं। इस गाय के दूध पर उसके बछडे के अधिकार समझना चाहिये। आज दिन भर व्रत रखकर संध्या के समय बछड़े सहित गाय माता की पूजा करनी चाहिये। इस दिन गेंहूँ और चाँवल का भोज्य वर्जित माना गया है।
बहुला चौथ व्रत कथा के अनुसार किसी ब्राह्मण के घर में बहुला नामक एक गाय थी। बहुला गाय का एक बछड़ा था. बहुला को संध्या समय में घर वापिस आने में देर हो जाती तो उसका बछड़ा व्याकुल हो उठता था। एक दिन बहुला घास चरते हुये अपने झुंड से बिछड़ गई और जंगल में काफ़ी दूर निकल गयी , तभी भगवान श्रीकृष्ण को माया सूझी। जंगल में जब गाय अपने घर लौटने का रास्ता खोज रही थी कि भगवान अचानक उसके सामने एक खूंखार सिंह के रूप में पहुँचे , सिंह ने बहुला पर झपट्टा मारा। तब बहुला उससे विनती करने लगी कि उसका छोटा-सा बछड़ा सुबह से उसकी राह देख रहा है , वह भूखा है और दूध मिलने की प्रतीक्षा कर रहा है , आप कृपया कर मुझे जाने दें। मैं उसे दूध पिलाकर वापिस आ जाऊँगी, तब आप मुझे खाकर अपनी भूख को शांत कर लेना। सिंह को बहुला पर विश्वास नहीं था कि वह वापिस आयेगी , तब बहुला ने सत्य और धर्म की शपथ ली और सिंहराज को विश्वास दिलाया कि वह वापिस जरूर आयेगी तब सिंह ने बहुला को उसके बछड़े के पास वापिस जाने दिया। बहुला शीघ्रता से घर पहुँची , अपने बछडे़ को शीघ्रता से दूध पिलाया और उसके बाद अपना वचन पूरा करने के लिये सिंहराज के समक्ष जाकर खडी़ हो गयी। सिंह के रुप में भगवान कृष्ण को उसे अपने सामने देखकर बहुत हैरानी हुई। उसे देखकर सिंह का रूप धरे श्रीकृष्ण भगवान प्रकट हो गये और बोले यह तेरी परीक्षा थी। तू अपने सत्य धर्म पर दृढ़ रही, अत: इस प्रभाव से घर-घर में तेरा पूजन होगा और तू गौ माता के नाम से पुकारी जायेगी। बहुला अपने घर लौट आयी और अपने बछड़े के साथ आनंद से रहने लगी। यह व्रत हमें अपने सत्य धर्म की रक्षा की संदेश देती है।

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