वीरता और साहस की प्रतीक मां कालरात्रि – अरविन्द तिवारी
नई दिल्ली – या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
चैत्र नवरात्रि का सातवां दिन यानि आज मां दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा-अर्चना के लिये समर्पित होता है। मां कालरात्रि को काली , महाकाली , भद्रकाली , भैरवी , मृत्यु , रुद्रानी , चामुंडा , चंडी , रौद्री और धुमोरना देवी के नाम से भी जाना जाता है। मां के इस स्वरूप को वीरता और साहस का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि मां कालरात्रि की कृपा से भक्त हमेशा भयमुक्त रहता है उसे अग्नि , जल , शत्रु आदि किसी का भी भय नहीं होता। नवरात्रि के सातवें दिवस पूजनीया मां कालरात्रि के बारे में अरविन्द तिवारी ने बताया कि मां दुर्गा के नौ स्वरूपों में कालरात्रि एक है। मां के इस रूप को मयंकर माना जाता है। इनका शरीर अंधकार की तरह काला है , काले रंग के कारण ही इनकों कालरात्रि कहा गया है , इसे काली मां का ही रूप माना जाता है। इनके श्वांस से आग निकलती है , मां के बाल बड़े और बिखरे हुये हैं और गले में पड़ी माला बिजली की तरह चमकती रहती है। मां कालरात्रि को आसरिक शक्तियों का विनाश करने वाला बताया गया है। इसके साथ ही मां के तीन नेत्र ब्रह्मांड की तरह विशाल व गोल हैं। मां के चार हाथ हैं जिनमें एक हाथ में खडग् अर्थात तलवार , दूसरे में लौह अस्त्र , तीसरे हाथ अभय मुद्रा में है और चौथा वरमुद्रा में है। इनका वाहन गर्दभ अर्थात गधा है जो समस्त जीव-जंतुओं में सबसे ज्यादा परिश्रमी और निर्भय है। मां इस वाहन पर संसार का विचरण करती हैं। गले में एक सफेद माला धारण करती हैं। देवी का यह स्वरूप तमाम ऋद्धि-सिद्धियों प्रदान करता है। इनकी उपासना से नकारात्मक ऊर्जा का असर नहीं होता है। ज्योतिष में शनि नामक ग्रह को नियंत्रित करने के लिये इनकी पूजा करना अदभुत परिणाम देता है। मां अपने इस रूप में भक्तों को काल से बचाती हैं अर्थात जो भक्त मां के इस रूप की पूजा करता है उसे अकाल मृत्यु नहीं होती है। कहा जाता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने वाले भक्तों को किसी भूत , प्रेत या बुरी शक्ति का भय नहीं सताता। मां दुर्गा ने असुरों के राजा रक्तबीज सहित मधु-कैटभ जैसे असुरों का संहार करने के लिये अपने तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया था। पौराणिक कथा के मुताबिक दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में अपना आंतक मचाना शुरू कर दिया तो देवतागण परेशान हो गये और भगवान शंकर के पास पहुंचे , तब भगवान शंकर ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने के लिये कहा। भगवान शंकर का आदेश प्राप्त करने के बाद पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध किया। लेकिन जैसे ही मां दुर्गा ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त की बूंदों से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए. तब मां दुर्गा ने मां कालरात्रि के रूप में अवतार लिया। मां कालरात्रि ने इसके बाद रक्तबीज का वध किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को अपने मुख में भर लिया जिससे रक्तबीज का रक्त जमीन पर नही गिरा और रक्तबीज पुनर्जीवित नही हो पाया। इस तरह माता कालरात्रि की कृपा से धरती को राक्षसों से मुक्ति मिली।
मां कालरात्रि व्यक्ति के सर्वोच्च चक्र , सहस्त्रार को नियंत्रित करती हैं। यह चक्र व्यक्ति को अत्यंत सात्विक बनाता है और देवत्व तक ले जाता है। इस चक्र तक पहुंच जाने पर व्यक्ति स्वयं ईश्वर ही हो जाता है. इस चक्र पर गुरु का ध्यान किया जाता है। इस चक्र का दरअसल कोई मंत्र नहीं होता। नवरात्रि के सातवें दिन इस चक्र पर अपने गुरु का ध्यान अवश्य करें।षोडशोपचार मां की पूजा के पश्चात ।।”ऊं देवी कालरात्र्यै नमः”।। मंत्र का जाप करें और मां को लाल फूल अर्पित करके गुड़ का भोग लगायें। श्रद्धापूर्वक मां कालरात्रि की पूजा आराधना करने से मां हमेशा अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं और शुभ फल प्रदान करती हैं , इसलिये मां के एक नाम शुभकरी भी पड़ा।जगज्जननी माँ दुर्गा के सभी नौ स्वरूपों में माँ कालरात्रि का रूप सबसे शक्तिशाली है। नवरात्र की सप्तमी तिथि को सुबह-शाम दोनों समय माता कालरात्रि के 108 नाम का श्रद्धा पूर्वक जप करने वाला साधक माता कालरात्रि की विशेष कृपा का अधिकारी बन जाता है। जपकर्त्ता अपने सामने तांबे के कलश में जल भकर उसके उपर गाय के घी का दीपक जलावें। अगर संभव हो तो नाम जप के बाद इन सभी नामों का उच्चारण करते हुये हवन कुंड में आहुति भी डालें।