मां कुष्मांडा ने की थी ब्रह्माण्ड की संरचना – अरविन्द तिवारी

0

नई दिल्ली – इन दिनों चल रही नवरात्रि के दौरान हर दिन का अलग महत्व होता है और प्रतिदिन देवी के हर स्वरूप की पूजा होती है। आज इस नवरात्रि पावन पर्व के चौथे दिन देवी कूष्मांडा की पूजा का विधान है —
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
नवरात्रि के चतुर्थ दिवस के बारे में बताते हुये अरविन्द तिवारी ने कहा कि आज के दिन कूष्मांडा देवी के स्वरूप की पूजा आराधना की जाती है। इस दिन साधक का मन “अनाहत” चक्र में अवस्थित होता है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था , सभी तरफ अंधेरा व्याप्त था तब इन्हीं देवी ने अपनी मंद हंसी से ब्रह्मांड की रचना की थी , यह सृष्टि की आदिस्वरूपा और आदिशक्ति है। चेहरे पर हल्की मुस्कान लिये माता कुष्मांडा को सभी दुखों को हरने वाली माँ कहा जाता है। कुष्मांडा देवी योग और ध्यान की देवी है। देवी का यह स्वरूप अन्नपूर्णा का भी है। माता कुष्मांडा के दिव्य रूप को मालपुआ का भोग लगाना चाहिये। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में हैं , वहां निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान है , इनके तेज और प्रकाश से दशों दिशायें प्रकाशित हो रही है। ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। इनकी आठ भुजायें हैं अतः इन्हें अष्टभुजी देवी के नाम से भी जाना जाता है। इनके सातों हाथों में कमंडल , धनुष , बाण , कमल , अमृतपूर्ण कलश ,चक्र , गदा एवं आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है। मां कुष्माण्डा के शरीर में कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान है। इनके प्रकाश से ही दसों दिशायें उज्जवलित हैं। मां कुष्मांडा की उपासना मनुष्य को आधियों , व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख , समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है। संस्कृत भाषा में कुष्मांडा को कुम्हड़ कहते हैं , बलियों में कुम्हड़े की बलि इसे सर्वाधिक प्रिय है इस कारण से भी मांँ कुष्मांडा कहलाती है। ज्योतिष में इनका संबंध बुध नामक ग्रह से है। इसकी उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग शोक दूर कर विद्या , बुद्धि , आयु , यश की प्राप्ति की जा सकती है। मान्यता के अनुसार हरे वस्त्र धारण करके माँ कुष्मांडा का पूजन करें। पूजा के दौरान मां को हरी इलाइची , सौंफ या कुम्हड़ा अर्पित करें। मां कूष्मांडा को गुड़हल का फूल या लाल फूल बहुत प्रिय है , इसलिये उनकी पूजा में गुड़हल का फूल अर्पित करें। वैसे तो मां कूष्मांडा को मालपुये का भोग अतिप्रिय है। लेकिन भक्तों के पास जो होता है मां उस भोग को भी सहर्ष स्वीकार कर लेती हैं। इसके बाद उनके मुख्य मंत्र “ॐ कूष्मांडा देव्यै नमः” का 108 बार जाप करें , चाहें तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें। इनकी उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। इनकी आराधना से मनुष्य त्रिविध ताप से मुक्त होता है। जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं , उन्हें दुर्गा पूजा के चौथे दिन माता कूष्‍मांडा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिये। इनकी पूजा करने से आयु , यश , बल और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। मां कुष्मांडा की विधि विधान से पूजा करने से मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिये आज चतुर्थ दिवस निम्न मंत्र का जाप करना चाहिये –
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थात् — हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed