जाने क्या है करवा चौथ की कथा : हर गाँव व शहरो मे मना करवा चौथ

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लोकेशन/सिमगा
रिपोर्टर/ओंकार प्रसाद साहू

जाने क्या है करवा चौथ की कथा : हर गाँव व शहरो मे मना करवा चौथ

गौरतलब हो कि इस बार करवा चौथ का व्रत 1 नवंबर को मनाया गया। सर्वविदित है कि इस व्रत की कथा में करवा माता की कथा का वर्णन मिलता है। करवा माता की कथा का पाठ करने से पति की आयु लंबी होती है। वही वैवाहिक जीवन में प्रेम और तालमेल बना रहता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखी रही। जब शाम को चांद को अर्घ्‍य देकर ही अपनी छलनी से पति का चेहरा देखकर ही व्रत तोडी ।

वहीं सुहागीनो के आलावा कुंवारी कन्याएं भी मनोनुकूल पति की प्राप्ति के लिए इस दिन निर्जला व्रत रखकर तारों को देख फिर व्रत तोडी। आईये आपको बताने जा रहे हैं। क्या है और कब से, क्यो मनाया जाता है। यह करवा चौथ के व्रत के पीछे की कथा।

पुराणो के अनुसार करवा चौथ की कहानी यह है। कि, देवी करवा अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के पास रहती थीं। एक दिन करवा के पति नदी में स्नान करने गए तो एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया और नदी में खिंचने लगा। मृत्यु करीब देखकर करवा के पति करवा को पुकारने लगे। करवा दौड़कर नदी के पास पहुंचीं और पति को मृत्यु के मुंह में ले जाते मगर को देखा। करवा ने तुरंत एक कच्चा धागा लेकर मगरमच्छ को एक पेड़ से बांध दिया। करवा के सतीत्व के कारण मगरमच्छा कच्चे धागे में ऐसा बंधा की टस से मस नहीं हो पा रहा था। करवा के पति और मगरमच्छ दोनों के प्राण संकट में फंसे थे।

करवा ने यमराज को पुकारा और अपने पति को जीवनदान देने और मगरमच्छ को मृत्युदंड देने के लिए कहा। यमराज ने कहा मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि अभी मगरमच्छ की आयु शेष है और तुम्हारे पति की आयु पूरी हो चुकी है। क्रोधित होकर करवा ने यमराज से कहा, अगर आपने ऐसा नहीं किया तो मैं आपको शाप दे दूंगी। सती के शाप से भयभीत होकर यमराज ने तुरंत मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को जीवनदान दिया। इसलिए करवाचौथ के व्रत में सुहागन स्त्रियां करवा माता से प्रार्थना करती हैं कि हे करवा माता जैसे आपने अपने पति को मृत्यु के मुंह से वापस निकाल लिया वैसे ही मेरे सुहाग की भी रक्षा करना।

करवा माता की तरह सावित्री ने भी कच्चे धागे से अपने पति को वट वृक्ष के नीचे लपेट कर रख था। कच्चे धागे में लिपटा प्रेम और विश्वास ऐसा था कि यमराज सावित्री के पति के प्राण अपने साथ लेकर नहीं जा सके। सावित्री के पति के प्राण को यमराज को लौटाना पड़ा और सावित्री को वरदान देना पड़ा कि उनका सुहाग हमेशा बना रहेगा और लंबे समय तक दोनों साथ रहेंगे।इस प्रकार से तब से आज तक लोग इस वृत को रखते हुए आरही है।

पतिव्रता महिलाओं ने करवा चौथ का व्रत रख पति की लंबी उम्र की कीये कामना

इस अवसर पर ही 1 नवंबर बीते कल बुधवार को पुरे देश भर में करवा चौथ का त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास एवं भक्ति भाव से मनाया गया। वही छत्तीसगढ़ में भी यह त्यौहार हर गांव शहर में इस बार और भी अधिक मनाते हुए देखा गया।

आपको बता दें कि इस बार छत्तीसगढ़ के सभी गांवों व कस्बों में भी हर आयु वर्ग के सुहागीन महिलाओं के द्वारा पुरे दिन भर निर्जला वृत रख कर। रात में चांद के दर्शन कर अपने पति के लंबी उम्र की कामना करवा चौथ माता की। तत्पश्चात अपने पति के हाथो ही जल ग्रहण कर भोजन ग्रहण किया। यह श्रद्धाभक्ती अपने पति के प्रति प्रतिव्रताधर्म का पालन करते देख। हर वो पति जीनकी पत्नी यह करवा चौथ का व्रत रख पुजा अर्चना किया ।वह अपने आप को बडे ही गर्व महसूस किया। वही अपने आप को अयसी पत्नी पाकर धन्य माना।

इस दिन शाम से ही हर वो पति जीनकी पत्नी यह करवा चौथ का व्रत रखी थी। वह अपने काम व्यवसाय, नौकरी, व हर व्यस्तता से निकलकर अपने पत्नी व घर परिवार को समय दिया। इस प्रकार एक दिन बडे हंसी-खुशी के पल अलग से गुजारे।

जाने क्या है करवा चौथ की कथा : हर गाँव व शहरो मे मना करवा चौथ

गौरतलब हो कि इस बार करवा चौथ का व्रत 1 नवंबर को मनाया गया। सर्वविदित है कि इस व्रत की कथा में करवा माता की कथा का वर्णन मिलता है। करवा माता की कथा का पाठ करने से पति की आयु लंबी होती है। वही वैवाहिक जीवन में प्रेम और तालमेल बना रहता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखी रही। जब शाम को चांद को अर्घ्‍य देकर ही अपनी छलनी से पति का चेहरा देखकर ही व्रत तोडी । वहीं सुहागीनो के आलावा कुंवारी कन्याएं भी मनोनुकूल पति की प्राप्ति के लिए इस दिन निर्जला व्रत रखकर तारों को देख फिर व्रत तोडी। आईये आपको बताने जा रहे हैं। क्या है और कब से, क्यो मनाया जाता है। यह करवा चौथ के व्रत के पीछे की कथा।

पुराणो के अनुसार करवा चौथ की कहानी यह है। कि, देवी करवा अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के पास रहती थीं। एक दिन करवा के पति नदी में स्नान करने गए तो एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया और नदी में खिंचने लगा। मृत्यु करीब देखकर करवा के पति करवा को पुकारने लगे। करवा दौड़कर नदी के पास पहुंचीं और पति को मृत्यु के मुंह में ले जाते मगर को देखा। करवा ने तुरंत एक कच्चा धागा लेकर मगरमच्छ को एक पेड़ से बांध दिया। करवा के सतीत्व के कारण मगरमच्छा कच्चे धागे में ऐसा बंधा की टस से मस नहीं हो पा रहा था। करवा के पति और मगरमच्छ दोनों के प्राण संकट में फंसे थे।

करवा ने यमराज को पुकारा और अपने पति को जीवनदान देने और मगरमच्छ को मृत्युदंड देने के लिए कहा। यमराज ने कहा मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि अभी मगरमच्छ की आयु शेष है और तुम्हारे पति की आयु पूरी हो चुकी है। क्रोधित होकर करवा ने यमराज से कहा, अगर आपने ऐसा नहीं किया तो मैं आपको शाप दे दूंगी। सती के शाप से भयभीत होकर यमराज ने तुरंत मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को जीवनदान दिया। इसलिए करवाचौथ के व्रत में सुहागन स्त्रियां करवा माता से प्रार्थना करती हैं कि हे करवा माता जैसे आपने अपने पति को मृत्यु के मुंह से वापस निकाल लिया वैसे ही मेरे सुहाग की भी रक्षा करना।

करवा माता की तरह सावित्री ने भी कच्चे धागे से अपने पति को वट वृक्ष के नीचे लपेट कर रख था। कच्चे धागे में लिपटा प्रेम और विश्वास ऐसा था कि यमराज सावित्री के पति के प्राण अपने साथ लेकर नहीं जा सके। सावित्री के पति के प्राण को यमराज को लौटाना पड़ा और सावित्री को वरदान देना पड़ा कि उनका सुहाग हमेशा बना रहेगा और लंबे समय तक दोनों साथ रहेंगे।इस प्रकार से तब से आज तक लोग इस वृत को रखते हुए आरही है।

पतिव्रता महिलाओं ने करवा चौथ का व्रत रख पति की लंबी उम्र की कीये कामना

इस अवसर पर ही 1 नवंबर बीते कल बुधवार को पुरे देश भर में करवा चौथ का त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास एवं भक्ति भाव से मनाया गया। वही छत्तीसगढ़ में भी यह त्यौहार हर गांव शहर में इस बार और भी अधिक मनाते हुए देखा गया।

आपको बता दें कि इस बार छत्तीसगढ़ के सभी गांवों व कस्बों में भी हर आयु वर्ग के सुहागीन महिलाओं के द्वारा पुरे दिन भर निर्जला वृत रख कर। रात में चांद के दर्शन कर अपने पति के लंबी उम्र की कामना करवा चौथ माता की। तत्पश्चात अपने पति के हाथो ही जल ग्रहण कर भोजन ग्रहण किया। यह श्रद्धाभक्ती अपने पति के प्रति प्रतिव्रताधर्म का पालन करते देख। हर वो पति जीनकी पत्नी यह करवा चौथ का व्रत रख पुजा अर्चना किया ।वह अपने आप को बडे ही गर्व महसूस किया। वही अपने आप को अयसी पत्नी पाकर धन्य माना।

इस दिन शाम से ही हर वो पति जीनकी पत्नी यह करवा चौथ का व्रत रखी थी। वह अपने काम व्यवसाय, नौकरी, व हर व्यस्तता से निकलकर अपने पत्नी व घर परिवार को समय दिया। इस प्रकार एक दिन बडे हंसी-खुशी के पल अलग से गुजारे।

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