खुटाघाट बांध हुआ लबालब , सोमवार से वेस्ट वेयर चालू,छलकते बांध के नजारे को देखने पहुंचने लगे पर्यटक
रतनपुर से ताहिर अली की रिपोट
रतनपुर…..अंचल के सबसे प्रसिद्ध बांध और पर्यटक स्थल खुटाघाट में सोमवार को वेस्ट वेयर से पानी गिरना आरंभ हो गया । ऐसा बरसों बाद हुआ है जब अगस्त माह में ही बांध छलकने लगा। करीब 1.15 लाख एकड़ में इस बांध से सिंचाई होती है ।पिछले साल अच्छी बारिश के कारण बांध में पर्याप्त पानी था और इस वर्ष कुछ दिनों पहले तक पानी की कमी रही किंतु सप्ताह दस दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण खारंग नदी में पर्याप्त पानी हो गया जिस कारण सोमवार को बांध पूरी तरह भर गया और वेस्ट वेयर से अतिरिक्त पानी गिरना आरंभ हो गया। बांध को सुरक्षित रखने के लिए यह व्यवस्था की जाती है, जिससे बांध में अतिरिक्त पानी जमा होने के बाद वह एक अन्य निकासी से बह जाती है। लेकिन इस विशालकाय बांध में अतिरिक्त जल जब बहकर नदी रूपी निकासी में गिरती है तो यह विहंगम दृश्य किसी झरने की तरह दिखाई पड़ता है,
जिस कारण यह नजारा पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र होता है । प्रति वर्ष पर्यटकों को बांध के ओवरफ्लो होने की प्रतीक्षा रहती है । इस वेस्ट वेयर को देखने दूर-दूर से लोग खुटाघाट पहुंचते हैं। अमूमन ऐसा नजारा अगस्त के अंतिम दिनों में या फिर सितंबर माह में नजर आता है लेकिन इस साल 10 सितंबर के बाद अच्छी बारिश के कारण सितंबर महीने में ही खुटाघाट बांध पूरी तरह भर गया, यह पूरे अंचल के लिए अच्छी खबर है। उम्मीद थी कि एक-दो दिनों में यह पूरी तरह भर जाएगा लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में लगातार हो रही बारिश के कारण सोमवार को ही बांध पुरा भर गया। यह खबर आसपास फैलते ही लोग इस नजारे को देखने पहुंच रहे हैं। उम्मीद है कि इस साल के बहुत समय के बाद में ही खुटाघाट बांध यानी संजय गांधी जलाशय पूरी तरह भर जाने से आगामी काफी दिनों तक यह वेस्ट वेयर चालू रहेगा जिससे यहां पर्यटकों की आने से आमद बढ़ेगी। खूंटाघाट जलाशय को संजय गांधी (खारंग) जलाशय भी कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर-अंबिकापुर हाईवे पर स्थित जिले के रतनपुर से 12 किलोमीटर दूरी में खारंग नदी पर इस बांध का निर्माण किया गया है। इस बांध का निर्माण स्वतंत्रता के पूर्व 1920-30 के मध्य अंग्रेज शासन काल में किया गया था। इस बांध की सहायता से पूरे क्षेत्र में सिंचाई की प्रक्रिया की जाती है। इसके अलावा बिलासपुर शहर में पानी की आपूर्ति भी इसी बांध से वर्तमान में हो रही है।
बांध का नाम खुटाघाट क्यों ?
इस बांध के निर्माण के समय उसके डुबान क्षेत्र के पेड़ों को काटा नहीं गया था, जिस वजह से इस क्षेत्र के डूबने के बाद लकड़ी के ठुंठ यहां आज भी मौजूद हैं, छत्तीसगढ़ी में लकड़ी के इन ठूंठ को ‘खूंटा’ कहा जाता है जिस वजह से कालांतर में इस जगह को खूंटाघाट के नाम से जाना जाता है।