गुरु, मंत्र और माला कभी नहीं बदलना चाहिए : पं. परमानंद शास्त्री

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तिल्दा-नेवरा। धन से बढ़कर संतान है, संतान से बढ़कर प्राण और प्राण से बढ़कर होता है आत्मा।
उक्त बातें ग्राम मढ़ी के ठाकुरदेव चौक में समस्त मोहल्ले वासियों की ओर से आयोजित हो रही संगीतमय श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ सप्ताह के चतुर्थ दिन सोमवार को कथावाचक भागवत भूषण पंडित परमानंद शास्त्री मढ़ी वाले ने कही। कथा प्रसंग में कथा व्यास ने व्यास पीठ से ध्रुव चरित्र, जड़भरत चरित्र, प्रहलाद कथा, नरसिंह अवतार कथा का वर्णन किया तो भक्त भावविभोर हो उठे। कथा व्यास ने कहा कि, सतयुग के दौरान अवधपुरी में राजा उत्तानपद राज किया करते थे। उनकी बड़ी रानी का नाम सुनीति था और उनके कोई संतान नहीं थी। देवर्षि नारद रानी को बताते हैं कि यदि तुम दूसरी शादी करवाओगी तो संतान प्राप्त होगी। रानी अपनी छोटी बहन सुरुचि की शादी राजा से करवा देती है। कुछ समय बाद सुरुचि को एक संतान की उत्पत्ति होती है। जिसका नाम उत्तम रखा। उसके कुछ दिनों के बाद बड़ी रानी भी एक बालक ध्रुव को जन्म देती है। 5 वर्ष बाद जब राजा उत्तम का जन्म दिन मना रहे थे तो बालक ध्रुव भी बच्चों के साथ खेलता हुआ उनकी गोद में बैठ गया, जिस पर सुरुचि उठा देती है और उसे कहती है कि यदि अपने पिता की गोद में बैठना है तो अगले जन्म तक इंतजार कर। बालक ध्रुव को यह बात चुभ जाती है और वह वन में जाकर कठिन तपस्या करने लगते हैं। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उन्हें दर्शन देते हैं और उन्हें मनचाहा वरदान देने का वचन देते हैं। इस प्रसंग से यह शिक्षा मिलती है कि किसी से भेदभाव नहीं करना चाहिए और प्रभु की भक्ति में कोई विघ्न नहीं डालना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि, माता-पिता, गुरू, मित्र ये तीनों की बात अवश्य माननी चाहिए। संसार में माता-पिता से बड़ा पूंजी नहीं है। पति और पत्नी दो पहिए की तरह है दोनों में संतुलन होगा तभी जिंदगी रूपी गाड़ी चलेगा। नारी में यह ताकत होती है कि वो पुरूष को देवता भी बना सकता है और दानव भी। उन्होंने आगे कहा कि, दस प्रकार के दान में सबसे बड़ा दान बेटी का दान है। बेटी के बिना घर के सारी दौलत बेकार है। भक्त पुकारे तो भगवान को भी आना पड़ता है। भगवान को खोजने की जरूरत नहीं है वो तो कंकड़ पत्थर में भी है। लेकिन हम बाहरी दुनिया में भगवान खोजते रहते हैं। वासना को दूर करो तभी परमात्मा मिलेगा। भगवान अपने अंदर ही है लेकिन हम बाहर में खोजते रहते है। हमें खोजने की जरूरत है। कथा के बीच-बीच में मधुर भजनों पर श्रद्घालु झूम उठे। 02 मार्च तक आयोजित हो रही भागवत कथा का रसपान करने गांव सहित आसपास गांव से भी बड़ी संख्या में रसिक श्रोतागण पहुंच रहे हैं।
सी एन आई न्यूज से अजय नेताम

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