छत्तीसगढ़ राज्य स्तरीय चतुर्थ पंचगव्य चिकित्सा सम्मेलन

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छत्तीसगढ़ राज्य स्तरीय चतुर्थ पंचगव्य चिकित्सा सम्मेलन
– मुख्यमंत्री से पंचगव्य चिकित्सा को छत्तीसगढ़ का पारंपरिक चिकित्सा घोषित करने की मांग
– आने वाली पीढ़ी के लिए आयुर्वेद के ज्ञान, स्थानीय गौवंश एवं वृक्षों की रक्षा करना जरूरी : गव्यसिद्ध आचार्य डॉ. निरंजन वर्मा
– गाय के विज्ञान को कृषकों तक पहुंचाने की आवश्यकता
– छत्तीसगढ़ी लोक गीतों में मिट्टी का विज्ञान एवं श्रृष्टि का ज्ञान समाहित
– अभिभावकों से स्वाभिमान के साथ बच्चों से मातृभाषा छत्तीसगढ़ी में बातचीत करने की आग्रह
– गौशाला के नाम पर होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए चारा उपलब्ध कराने का सुझाव

राजनांदगांव। छत्तीसगढ़ पंचगव्य डॉक्टर असोसिएशन द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य स्तरीय चतुर्थ पंचगव्य चिकित्सा सम्मेलन का आयोजन पद्मश्री गोविंदराम निर्मलकर ऑडिटोरियम राजनांदगांव में किया गया। सम्मेलन में मुख्य वक्ता के रूप में पंचगव्य विद्यापीठम् कांचीपुरम् तमिलनाडु के संस्थापन एवं गुरूकुलपति व प्रसिद्ध गव्यसिद्ध आचार्य डॉ. निरंजन वर्मा ‘गुरूजीÓ द्वारा गौविज्ञान एवं पंचगव्य चिकित्सा पर विशेष व्याख्यान दिया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में छत्तीसगढ़ गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष श्री विशेषर सिंह पटेल उपस्थित थे।


डॉ. निरंजन वर्मा ने कहा कि गाय की रक्षा का विषय सदियों से भारतीयों के मध्य रहा है। पृथ्वी के सम्पूर्ण भूगोल में गाय वास करती थी। भारत में धर्म और अफ्रीका महाद्वीप के कुछ देशों में जंगलों को बचाने की उपयोगिता के आधार पर गौवंशों को बचा लिया गया। इसके अलावा गाय के भक्षण करने वाले अन्य सभी देशों में गाय की संपूर्ण प्रजाति विलुप्त हो गई। उन्होंने बताया कि 1945 में सर्वे के आधार पर भारत में 34 करोड़ गाय थी, लेकिन आज 4-5 करोड़ गौवंश ही देश में बचा हुआ है। इसका मुख्य कारण गाय की उपयोगिता को नष्ट करना है। गाय की उपयोगिता को पुन: स्थापित कर गौवंशों की रक्षा की जा सकती है। सुखद बात है कि छत्तीसगढ़ में भारतीय गौवंशों की संख्या अधिक है, लेकिन दुख की बात यह है कि वह किसानों के घरों की जगह सड़कों पर है। उन्होंने कहा कि राज्य में लगने वाले पशु मेले में पहुंचने वाले 98 प्रतिशत कसाई होते है और पात्र 2 प्रतिशत ही किसान होते है, उन्होंने राज्य शासन को सुझाव देते हुए पशु मेले को प्रतिबंधित करने का आग्रह किया। डॉ. निरंजन वर्मा ने गौशाला के नाम पर होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए राज्य सरकार से किसानों से अनाज के साथ ही चारा खरीदने और गौशालाओं को आर्थिक सहायता देने के स्थान पर खरीदे गए चारा को उपलब्ध कराने का सुझाव दिया। इससे किसान चारा को जलाएगा नहीं और किसान को अतिरिक्त आमदनी भी होगी।


डॉ. निरंजन वर्मा ने बताया कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों में गौवंशों के सिंघों के बनावट के आधार पर वर्षा होती है। स्थानीय गौवंशों के कारण ही छत्तीसगढ़ समवृष्टि वाला प्रदेश है, जिसके कारण यहां न ज्यादा बाढ़ आने की संभावना रहती है और न ही ज्यादा सूखा पड़ता है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में स्थानीय गौवंशों की उपेक्षा हो रही है और अन्य प्रदेशों के गौवंशों को लाया जा रहा है, जो अनुचित है। उन्होंने आने वाले पीढ़ी को प्राकृतिक छत्तीसगढ़ देने के लिए स्थानीय गौवंशों को बचाने का आह्वान किया। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में 30 साल पहले भू-जल का स्तर 10-15 फीट था, जो आज 300 से 400 फीट नीचे चला गया है, जो चिंता का विषय है। उन्होंने बताया कि गोबर के रस के उपयोग से 4-5 सालों में भू-जल के स्तर को पुन: 10-15 फीट तक लाया जा सकता है। गोमूत्र वाष्पकृत होकर बादलों में जाने से मेघों का शुद्धिकरण होता है और वर्षा के रूप में शुद्ध जल मिलता है। इसलिए गाय के विज्ञान को कृषकों तक पहुंचाने की आवश्यकता है। प्राचीन भारत के गुरूकुलों में गुरू, गाय व वट वृक्ष के सानिध्य से भारत में अनेक ज्ञानी हुए। छत्तीसगढ़ का सौभाग्य है कि सबसे ज्यादा वट वृक्ष छत्तीसगढ़ में है। आयुर्वेद से वृट, नीम, पीपल, बरगद, साल जैसे श्रेष्ट वृक्षों की उपयोगिता को हटा दिया गया। उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ी के लिए आयुर्वेद के ज्ञान, स्थानीय गौवंश एवं वृक्षों की रक्षा करने की आवश्यकता है।


डॉ. निरंजन वर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में मिट्टी का विज्ञान एवं श्रृष्टि का ज्ञान समाहित है, जो तेज गति से लुप्त हो रहा है, जिसे बचाना बहुत जरूरी है। उन्होंने अभिभावकों से स्वाभिमान के साथ अपने बच्चों से मातृभाषा छत्तीसगढ़ी में बातचीत करने की आग्रह किया। उन्होंने बताया कि सभी सरकारे स्वस्थ्य बजट को बढ़ाते जा रही है, लेकिन बीमारी घटने के बदले बीमारों की संख्या बढ़ती जा रही है। हमारा शरीर और पृथ्वी पंच महाभूत-भूमि, जल, अग्नि, वायु, आकाश तत्वों में बना है। इन पांचों तत्वों के असंतुलन से ही पृथ्वी एवं शरीर में बीमारियां आती है। गाय के गोबर में 23 प्रतिशत ऑक्सीजन होता है और मनुष्य की आवश्यकता 20.8 प्रतिशत है। जिस घर में गाय रहती है, उस घर में वायरस टीक नहीं सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में गौपालन से स्वास्थ्य बजट को कम किया जा सकता है।


डॉ. निरंजन वर्मा ने, मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय से गाय के गव्यों से चिकित्सा को छत्तीसगढ़ का पारंपरिक चिकित्सा घोषित करने का अनुरोध किया। ऐसा करने से गाय का संरक्षण व संवर्धन होगा, गाय से मिलने वाले दूध, गोमय, गोमूत्र के मेडिकल एप्लीकेशन से गौपालकों को आर्थिक लाभ मिलेगा और स्वरोजगार को भी बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने बताया कि विदेशों में भारतीय गौमूत्र एवं गोबर की बड़ी मांग है। पंचगव्य विद्यापीठम् के प्रयासों से गाय के विज्ञान को विदेशों तक पहुंचाया जा रहा है। पंचगव्य चिकित्सा से कोई भी रोग ठीक किया जा सकता है। अमेरिका ने गौ विज्ञान को समझते हुए 20 वर्ष पहले ही गौमूत्र पर पेंटेल ले लिया था। विदेशी बाजार खुलने से गाय का गोबर व गौमूत्र बिकने से किसानों को आर्थिक लाभ होगा।
छत्तीसगढ़ गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष श्री विशेषर सिंह पटेल ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि गाय सनातन संस्कृति का केन्द्र बिंदु है। गाय को केन्द्र बिंदु बनाकर समाजिक संरचना नहीं की जाएगी, तब तक भारत पुन: विश्वगुरू नहीं बन सकता है। उन्होंने बताया कि पंचगव्य में रोगप्रतिरोधक क्षमता होती है। प्रतिदिन पंचगव्य का सेवन करने से विभिन्न रोगों से बचा जा सकता है। रायायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुन उपयोग से धरती बीमारी हो गई है। धरती को पुन:स्वस्थ्य बनाने के लिए गौ-आधारित कृषि को अपनाना होगा। कार्यक्रम को जिला अध्यक्ष भाजपा कोमल सिंह राजपूत, छत्तीसगढ़ पंचगव्य डॉक्टर असोसिएशन के संरक्षक राधेश्याम गुप्ता व अध्यक्ष गव्यसिद्ध डॉ. अवधेश कुमार ने भी संबोधित किया। सम्मेलन में बाल गव्यसिद्ध ने गौ विज्ञान की जानकारी देते हुए गौ आधारित जीवनशैली को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया। इस अवसर पर वार्ड पार्षद खेमीन राजेश यादव, सतीश चंदेले, ओडि़शा के आचार्य धर्मराज, ओम प्रकाश शर्मा, डॉ. विकास सिंह राठौर, गव्यसिद्ध डॉक्टर प्रमोद कश्यप, मुकेश स्वर्णकार, धीरेन्द्र यादव, डिलेश्वर साहू सहित समाज सेवी, गौ सेवक एवं बड़ी संख्या में नगरवासी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन गव्यसिद्ध डॉक्टर पुरूषोत्तम सिंह राजपूत द्वारा किया गया।

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