बछबारस /वत्स एकादशी आज, पुत्रवती माताएं अपने पुत्र की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह व्रत रखती है।

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बछबारस /वत्स एकादशी आज, पुत्रवती माताएं अपने पुत्र की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह व्रत रखती है। सी एन आइ न्यूज-पुरुषोत्तम जोशी। बछबारस- जन्माष्टमी के चार दिन बाद यानि भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि का विशेष महत्व है, आज के दिन बछ बारस का त्योहार मनाया जा रहा है. आज के दिन गौमाता की बछड़े सहित पूजा की जाती है.।

माताएं अपने पुत्रों को तिलक लगाकर तलाई फोड़ने के बाद लड्डू का प्रसाद देती है यानि पुत्रवान महिलाये अपने संतान की मंगल कामना के लिए व्रत रखती है और पूजा करती है.।
इस दिन गेंहू से बने हुए पकवान और चाकू से कटी हुई सब्जी नही खाई जाती हैं. बाजरे या ज्वार का सोगरा और अंकुरित अनाज की कढ़ी व सूखी सब्जी बनाई जाती है. महिलाओं द्वारा सुबह गौमाता की विधिवत पूजा अर्चना करने के बाद घरों या सामूहिक रूप से बनी मिट्टी व गोबर से बनी तलैया को अच्छी तरह सजाकर उसमें कच्चा दूध और पानी भरकर उसकी कुमकुम, मौली, धूप दीप प्रज्वलित कर पूजा करती हैं और बछबारस की कहानी सुनी जाती है.।

बछ बारस हर साल जन्माष्टमी के चार दिन पश्चात भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की द्वादशी के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष 20 अगस्त को  मनाया जा रहा है इसलिए इसे गोवत्स द्वादशी भी कहते है. भगवान कृष्ण के गाय और बछड़ो से बड़ा प्रेम था इसलिए इस त्यौहार को मनाया जाता है.

मान्यता है की बछ बारस के दिन गाय और बछड़ो की पूजा करने से भगवान कृष्ण सहित गाय में निवास करने वाले सैकड़ो देवताओ का आशीर्वाद मिलता है जिससे घर में खुशहाली और सम्पन्नता आती है. बछबारस का पर्व राजस्थानी महिलाओं में ज्यादा लोकप्रिय है।

पूजा के लिए भैंस का दूध और दही , भीगा हुआ चना और मोठ लें. मोठ-बाजरे में घी और चीनी मिलाये. गाय के रोली का टीका लगाकर चावल के स्थान पर बाजरा लगाये. बायने के लिए एक कटोरी में भीगा हुआ चना , मोठ ,बाजरा और रुपया रखे. इस दिन बछड़े वाले गाय की पूजा की जाती है।

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