पिथौरा में प्रशासनिक उदासीनता और दबंगों का बोलबाला: ग्रामीण ने मांगी इच्छा मृत्यु,

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महासमुंद जिले के पिथौरा तहसील में प्रशासनिक उदासीनता, भ्रष्टाचार और दबंगों को कथित संरक्षण के खिलाफ ग्रामीणों का गुस्सा चरम पर पहुंच गया है। ग्राम रिखादादर के निवासी कैलाश प्रधान ने अपनी पैतृक जमीन पर अवैध कब्जे और दबंगों की प्रताड़ना से तंग आकर कलेक्टर महासमुंद को इच्छा मृत्यु की अनुमति के लिए आवेदन देकर क्षेत्र में सनसनी फैला दी है। इस घटना ने प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, और ग्रामीणों में आक्रोश की लहर दौड़ पड़ी है।कैलाश प्रधान का दर्द 10 साल से न्याय की गुहार, मिली सिर्फ निराशा कैलाश प्रधान ने अपने आवेदन में मार्मिक शब्दों में अपनी पीड़ा व्यक्त की है। उन्होंने लिखा:
“मेरी पैतृक जमीन पर पिछले 10 वर्षों से दबंगों और कुछ परिजनों ने अवैध कब्जा कर रखा है। मैं और मेरा परिवार लगातार प्रताड़ित हो रहा है। तहसीलदार पिथौरा द्वारा सीमांकन कर मुझे जमीन पर काबिज कराया गया था, लेकिन दबंगों ने कानून को ठेंगा दिखाते हुए दोबारा कब्जा कर लिया। मैंने हर शासकीय कार्यालय में गुहार लगाई, लेकिन प्रशासन की निष्क्रियता और दबंगों की ताकत के आगे मेरी आवाज दब गई। अब जीने की इच्छा खत्म हो चुकी है, इसलिए इच्छा मृत्यु की अनुमति चाहता हूं।”

कैलाश का यह कदम प्रशासन के कार्यों की पोल खोलता है, जो यह दर्शाता है कि आम नागरिक कितना असहाय और हताश महसूस कर रहा है।

पिथौरा क्षेत्र में कैलाश जैसे कई पीड़ित हैं, जिनकी शिकायतें तहसील कार्यालय में धूल फांक रही हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि राजस्व निरीक्षक और तहसील कर्मचारी दबंगों के साथ मिलीभगत कर उनकी शिकायतों को दबा देते हैं। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि कुछ अधिकारियों की निष्क्रियता और भ्रष्टाचार के कारण दबंग बेख़ौफ़ होकर उत्पात मचा रहे हैं।हाल ही में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया था, जिसमें पिथौरा तहसील के कानूनगो शाखा के सहायक ग्रेड-2 को एंटी करप्शन ब्यूरो ने 25,000 रुपये की रिश्वत और एक बकरे की मांग करते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया। यह घटना प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों को उजागर करती है।

लंबित शिकायतें और टूटी उम्मीदें
पिथौरा तहसील में दर्जनों शिकायतें वर्षों से लंबित हैं। ग्रामीणों का कहना है कि तहसीलदार और राजस्व निरीक्षक शिकायतों पर कार्रवाई करने के बजाय उन्हें टालते रहते हैं। कई पीड़ितों ने बताया कि वे बार-बार कार्यालयों के चक्कर काटने के बाद भी खाली हाथ लौटते हैं। इस स्थिति ने न केवल दबंगों का मनोबल बढ़ाया है, बल्कि आम लोगों का प्रशासन से विश्वास भी उठ गया है।

स्थानीय प्रशासन की चुप्पी, कलेक्टर पर टिकी निगाहें
कैलाश प्रधान के आवेदन के बाद लोग अब कलेक्टर से इस मामले में हस्तक्षेप और ठोस कार्रवाई की उम्मीद कर रहे हैं। यदि प्रशासन ने जल्द कदम नहीं उठाए, तो यह आंदोलन और बड़ा रूप ले सकता है।

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