ग्राम निनवा मे शनिवार को धूमधाम से मनाया गया कमरछठ (हलषष्ठी) का त्यौहार

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सी एन आई न्यूज से अजय नेताम की रिपोर्ट

तिल्दा नेवरा — समीपस्थ ग्राम निनवा मे शनिवार को ग्रामीणों द्वारा सन्तान की प्राप्ति, सन्तान की सौभाग्यता और दीर्घायु आयु की कामना को लेकर धूमधाम के साथ कमरछठ (हलषष्ठी) का त्योहार मनाया गया. ग्रामीणों ने बताया कि ग्राम पुरोहित भागवत आचार्य पंडित संजय शर्मा जी, निनवा वाले के सानिध्य मे विधि विधान के साथ माता हलषष्ठी की पूजा की गई तत्पश्चात आचार्य शर्मा द्वारा माता हलषष्ठी के व्रत के संबद्ध मे कथा भी सुनाई गयी. आचार्य शर्मा ने बताया कि शास्त्रों मे भाद्र कृष्ण पक्ष षष्ठी के दिन माता हलषष्ठी व्रत उपवास का विधान बताया गया है.. इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भैया बलराम जी का भी जन्म हुआ था. पंडित शर्मा ने बताया कि इस दिन माताएं बहने सन्तान की कामना और उनकी दीर्घायु आयु की कामना को लेकर माता हलषष्ठी की पूजा करते है. इस दिन पूजा मे अन्न जल अर्थात पसहर चावल, महुए के फल और पत्ते, लाई, भैंस का दूध, दही. घी, इत्यादि का उपयोग किया जाता है. इस दिन गाय के दूध, दही का उपयोग नहीं किया जाता है. हल चले हुए जमीन के वस्तु का उपयोग नहीं किया जाता. हल चले हुए जमीन पर मातायें बहनो को चलना निषेध माना गया है. इस प्रकार व्रत का विधान बताते हुए आचार्य शर्मा ने इस सन्दर्भ मे कथा अंतर्गत कहा कि पूर्वकाल मे चंद्रव्रत नाम का एक राजा हुआ जिनकी पत्नी का नाम सुवर्णा थी. उनके एक पुत्र भी थे. राजा ने अपने राज्य मे बहुत बड़ा तालाब खुदवाया लेकिन दुर्भाग्य वश उस तालाब मे जल नहीं निकला. तालाब सूखा रह गया. राहगीर आते जाते समय सूखे तालाब को देखकर राजा को गाली देने लगे. एक दिन रात्री मे राजा को वरुण देवी ने स्वप्न मे कहा कि अपने पुत्र का बलिदान करोगे तो तालाब मे जल से भर जाएगा. पुत्र के मोह मे राजा ने अपने पुत्र का बलिदान नहीं किया. जब ये बात उनके पुत्र को पता चली तो वह एक रात बिना किसी को बताये स्वयं ही बलिदान होने उस तालाब के पास चला गया. उस समय तालाब जल से लबालब भर गया और जल मे डूब कर उस राजकुमार की मृत्य हो गई. यह बात राजा को जब पता चली तो राज्य मे चारो तरफ शोक और दुख छा गया. समयानुसार रानी ने माता हलषष्ठी का व्रत पूजन किए जिसके फल स्वरुप राजा के मरे हुए पुत्र जीवित होकर वापस राज भवन मे आए. राजकुमार को जीवित देखकर राजभवन मे चारो तरफ खुशी छा गयी. आगे आचार्य जी ने रेवती- मानवती की कथा, ग्वाला ग्वालिन, सेठ सेठानी के साथ अन्य कथाओं को श्रवण कराते हुए कहा कि माता देवकी ने भी नारदजी के आदेशानुसार कारागृह मे रहकर मानसिक रूप से बिना किसी पूजन सामाग्री के ही मन ही मन माता हलषष्ठी की मानसिक पूजा की, जिनके फलस्वरुप माता का आशिर्वाद मिला और उनके गर्भ से भगवान का कृष्ण का अवतार होता है. कथा सुनने ग्रामीण नर नारी अधिकाधिक संख्या मे उपस्थित थे.

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