शिव शयन चतुर्दशी आज, इस तिथि को शिव शयनोत्सव के नाम से जाना जाता है।

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शिव शयन चतुर्दशी आज, इस तिथि को शिव शयनोत्सव के नाम से जाना जाता है। सी एन आइ न्यूज-पुरुषोत्तम जोशी। सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु का आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी यानी रविवार से 4 महीने के लिए शयन काल शुरू हो गया है। भगवान विष्णु के शयन पर जाने के बाद अब शिवजी भी योग निद्रा में जाने वाले हैं। इस तिथि को शिव शयनोत्सव के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव शयन काल में जाने से पहले अपने एक अन्य स्वरूप रुद्र को सृष्टि का कार्यभार सौंप देते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान रुद्र का शासन राष्ट्रपति के शासन काल की तरह होता है, जिसमें सभी नियमों का पूरी तरह पालन करना होता है।

रुद्र भगवान जब सृष्टि का दायित्व संभालते हैं, तब उनकी नजर आपकी गलतियों पर बनी रहती है और धर्म अध्यात्म के कार्य करने वालों की इच्छा भी जल्दी पूरी होती है। ऋग्वेद में रुद्र की स्तुति ‘बलवानों में सबसे अधिक बलवान’ कहकर की गयी है। यजुर्वेद का रुद्राध्याय, रुद्र देवता को ही समर्पित है। रुद्र को ही कल्याणकारी होने से शिव कहा गया है। इसलिए इन दिनों रुद्र भगवान की पूजा करना सबसे अधिक फलदायी मानी गई है। भगवान रुद्र जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं और क्रोध भी इनको जल्दी ही आता है। सृष्टि का कार्यभार संभालने के दौरान जब वह किसी के कर्मों से प्रसन्न होते हैं, उसकी सभी समस्याओं को खत्म कर देते हैं। वहीं जिस पर क्रोध आता है तो उसको कई तरह समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

शिव शयनोत्सव के बाद आएगा सावन मास

शिव शयनोत्सव के बाद सावन मास का प्रारंभ होता है और इस दौरान सावन सोमवार का व्रत का विशेष महत्व है। इस मास में शिव पूजा और सावन स्नान की परंपरा शुरू होती है। शिवपुराण में बताया गया है कि सावन सोमवार का व्रत रखने वाले व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है। भगवान शिव को प्रिय होने के अलावा सावन मास अन्य कारणों से भी शुभ फलदायी माना गया है। इसी महीने सागर मंथन की शुरुआत हुई थी और मार्कंडेय ने भी अपनी लंबी उम्र की तपस्या के लिए इस माह को चुना था। इस माह शिव भक्तों द्वारा कावंड़ यात्रा का आयोजन किया जाता है।

चातुर्मास में न खाएं ये चीजें

चातार्मास के दौरान भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं। मान्यता है कि भगवान इस दिन से 4 मास तक पाताल में राजा बलि के द्वार पर निवास करके कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को लौटते हैं। इसीलिए, आषाढ़ी शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘देवशयनी’ और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘प्रबोधिनी’ या ‘देवउठनी’ एकादशी कहते हैं। इन 4 महीने में यज्ञोपवीत, विवाह संस्कार, गृह प्रवेश, मुंडन सहित सभी मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, चातुर्मास के पहले महीने श्रावण में हरी सब्जी, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध और कार्तिक में दाल नहीं खानी चाहिए। चातुर्मास में पान मसाला, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन भी वर्जित है।

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