सब की इच्छा की पूर्ति करने वाले भगवान करिया धुरवा। लोक आस्था का सबसे बड़ा प्रतीक

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पिथौरा- आज से पिथौरा क्षेत्र के सबसे बड़े करिया धुरवा मेला महोत्सव का सुभारम्भ पूजा अर्चना के साथ सुरु होने जा रहा है। तीन दिनों तक चलने वाले मेले में अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे है।अगहन पूर्णिमा के अवसर पर लोक आस्था के दर्शनार्थियो की भीड़ लगी रहती है।लोक मान्यता है कि श्रद्धालु जो भी मन्नते विशेष कर निहसंतान दंपतियों द्वारा की गई संतान प्राप्ति की कामना अवश्य पूर्ण होती है।

करिया धुरवा का यह मंदिर पिथौरा से 6 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पंचायत मुढ़ीपार के आश्रित ग्राम अर्जुनी में स्थित है जहाँ मेला अवधि के इतर भी साल भर अपनी अपनी कामनाओ को लेकर श्रद्धालुओ का आना जाना लगा रहता है।
करिया धुरवा मेला तीन दिवसीय मेला में हजारों श्रद्धालुओं का होता है संगम ग्राम
पंचायत मुढ़ीपार के आश्रितग्राम अर्जुनी कौड़िया जमींदार के क्षेत्र के नाम से
जाना जाता है। यह क्षेत्रपिथौरा विकासखंड केअंतर्गत आता है यहीं करिया धुरवा के प्राचीनपत्थर के मूर्ति विराजमान है जो ग्रामीण व शहरीश्रदालुओं के आस्था और विश्वास का केंद्र है। यहां श्रद्धालुजन जिनमें राजनीति से जुड़े लोग भी शामिल है
अपनी मन्नत मांगते हैं। इनका कहना है कि जो भी यहां श्रद्धा के
साथ पूजा अर्चना करते हैं वह पूरी हो जाती हैं। कोई विधायक
सरपंच, जनपद सदस्य, नगर पंचायत अध्यक्ष, पार्षद आदि टिकट
मांग करते हैं। नामांकन दाखिल करते है अपने चुनाव का प्रचार
करते है शुभारंभ यही से करते हैं। इस प्राचीन पुरातात्विक मूर्ति के
बारे में लोगों की किवदंती है कि कौड़िया राजा के करिया घुरवा
हजारों बरस पहले करिया, धुरवाईन से विवाह करने आ रहे थे उसी
समय दूसरी तरफ से धुरवाईन भी तात्कालिन समय के विवाह रीति
रिवाज के अनुसार बारात की पर्वनी करने वाले थे। लोगों की किवदंती के अनुसार कहते
है उस समय 6 महीने की रात और 6 महीने के दिनहुआ करता था। विवाह के पहले राजा करिया धुरवाऔर धुरवाईन के सगे संबंधी तय किये थे कि दिन होने के पहले वरमाला और विदाई का रस्म हो जाना चाहिये पर विवाह के ये शर्त पूरा नहीं हो पाया और दिन का सूरज उदय हो गया फिर क्या था दोनों पक्ष के वर और वधु और उनके साथ के जीव घोड़ा, घोड़ी, वस्तु बाजा गाजा, मोहरी शादी के सामान सहित बाराती घराती सगे संबंधी पत्थर में परिवर्तित हो गये जो आज तक है और इसी रूप
में पूजित होते आ रहे है। पश्चिम दिशा में करिया धुरवा के सेना
और पूर्व दिशा में धुरवाईन के सेना है जो कई वर्षों से खुले में पड़े
रहे। बाद में मेला समिति द्वारा मंदिर निर्माण कर इसे विधि विधान
से पूजा कर स्थापित किया गया जहां श्रद्धालु पूजा करते है।

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