भगवान की भक्ति मे विश्वास और श्रद्घा का होना अति आवश्यक है– आचार्य नंदकुमार शर्मा..
लोकेशन तिल्दा नेवरा
रिपोर्टर अजय नेताम
भगवान की भक्ति मे विश्वास और श्रद्घा का होना अति आवश्यक है– आचार्य नंदकुमार शर्मा..
तिल्दा नेवरा – समीपस्थ ग्राम निनवा मे चल रही पंच दिवसीय श्री शिव महापुराण कथा के तृतीय दिवस गुरुवार को कथा वाचक आचार्य पंडित नंदकुमार शर्मा जी, निनवा वाले ने शिव सती चरित्र कथा का वर्णन किए. उन्होंने बताया कि भगवान शंकर अपनी पत्नी सती को साथ लेकर राम कथा सुनने के लिए अगस्त मुनि के आश्रम पर जाते है. भगवान भोलेनाथ एकाग्रचित होकर मन लगाकर भगवान की कथा सुनते है लेकिन माता सती का ध्यान कथा मे नही होने के कारण उन्हें भगवान राम के ऊपर शंका हो गई कि ये पारब्रह्म परमात्मा राम नहीं है केवल दशरथ पुत्र राम है. आचार्य जी ने कहा कि जो मनुष्य भगवान की कथा को ध्यान पूर्वक मन लगाकर नहीं सुनता है उसे भगवान और उनकी लीलाओं मे संदेह अवश्य होता है जिनका परिणाम बड़ा ही गंभीर हो जाता है. माता सती ने शंका किए जिसके कारण आगे चलकर अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ मे हवन कुंड मे अपने शरीर जलाकर प्राणांत कर ली. आचार्य जी ने बताया कि भगवान की चरित्र कथा को पुस्तक से पढ़ने से मनुष्य को ज्ञान प्राप्त हो सकता है लेकिन भक्ति नहीं मिलती. जब तक भगवान की कथा को मन लगाकर श्रवण नहीं करेंगे तब तक भक्ति नहीं मिलती और जब तक भक्ति नहीं आएगी तब तक किसी को भी भगवान मिलने वाला नहीं है. बिना भक्ति भगवान का सानिध्य प्राप्त नहीं होगा. भगवान को जिस भाव से देखोगे, वो वैसे ही नजर आएंगे। भावपूर्ण भक्ति करने वाले भक्तों पर वे हमेशा कृपा करते हैं। आगे आचार्य जी ने जालंधर वध की काठ सुनाते हुए कहा कि भगवान भोलेनाथ के पसीने से ही जालंधर का जन्म होता है जिनकी पत्नी का नाम बृंदावती है.. बृंदावती के सतीत्व के कारण जालंधर को कोई नहीं मार सकता था लेकिन एक बार भगवान नारायण ने जालंधर कर रूप बनाकर बृंदावती के सतीत्व का नष्ट किए उसी समय भगवान शंकर ने जालंधर का वध किया और संसार को उनके अत्याचार से मुक्त किए. आगे आचार्य जी पार्वती जन्म और शिव पार्वती विवाह प्रसंग की व्याख्या किए.. आचार्य जी ने कहा कि माता पार्वती भगवान शंकर को पति रूप मे प्राप्त करने के लिए कई वर्षो तक तपस्या की जिनसे भगवान शंकर प्रसन्न हुए और उन्हें पत्नी रूप मे स्वीकर करने का आशिर्वाद दिया. आचार्य शर्मा जी ने कहा कि भगवान शंकर विश्वास का प्रतीक है और पार्वती जी श्रद्धा का प्रतीक है. तात्पर्य यही है भगवान की भक्ति और पूजा मे श्रद्घा और विश्वास का होना अति आवश्यक है.. भगवान शंकर और पार्वती प्रसंग मे सुन्दर झांकी प्रस्तुत की गई जिसे देखकर सभी श्रद्धालू गण रोमांचित और आनंदित हो उठे. सभी लोग विवाह झूम उठे. शिव पुराण की कथा सुनने श्रोताओ की अपार भीड़ बड़ती जा रहीं है..