हिंदू धर्म में किसी भी शुभ काम की शुरुआत स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर की जाती है।

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सी एन आइ न्यूज-पुरुषोत्तम जोशी ।

स्वास्तिक शब्द सु+ अस+क शब्दों से मिलकर बना है सु का अर्थ शुभ ,अस का अर्थ सत्ता या अस्तित्व और क का अर्थ कर्ता या करने वाला।इस तरह स्वास्तिक शब्द का अर्थ मंगल करने वाला माना गया है । एक धार्मिक कर्म जिसमें कोई शुभ कार्य आरंभ करते समय मांगलिक मंत्रों का पाठ किया जाता है। स्वस्ति मन्त्र शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है। स्वस्ति = सु+अस्ति = कल्याण हो। ऐसा माना जाता है कि इससे हृदय और मन मिल जाते हैं। स्वस्ति मन्त्र का पाठ करने की क्रिया स्वस्तिवाचन कहलाती है।
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधात ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

हिन्दी भावार्थ:- महान कीर्ति वाले इन्द्र हमारा कल्याण करो, विश्व के ज्ञानस्वरूप पूषादेव हमारा कल्याण करो। जिसका हथियार अटूट है ऐसे गरुड़ भगवान हमारा मंगल करो। बृहस्पति हमारा मंगल करो।

स्वस्ति-वाचन सभी शुभ एवं मांगलिक धार्मिक कार्यों को प्रारम्भ करने से पूर्व वेद के कुछ मन्त्रों का पाठ होता है, जो स्वस्ति-पाठ या स्वस्ति-वाचन कहलाता है । इस स्वस्ति-पाठ में ‘स्वस्ति’ शब्द आता है, इसलिये इस सूक्त का पाठ कल्याण करनेवाला है ।

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