रायपुर में गणेशोत्सव का इतिहास………………
रायपुर में गणेशोत्सव का इतिहास………………
सी एन आइ न्यूज़, पुरुषोत्तम जोशी ।
रायपुर- रायपुर में गणेशोत्सव का इतिहास काफी पुराना है। यह कब से शुरू हुआ, किसी को सही जानकारी नहीं है। कुछ जानकार बताते हैं रायपुर में पहले सिर्फ एक ही मूर्तिकार थे उनका नाम था गोविंदराव गिरहे। वे कंकालीपारा में मूर्ति बनाया करते थे, साथ ही वे बहुत अच्छे पेंटर भी थे। गोविंदराव जी के दो शिष्य थे नारायणराव (बूढ़ापारा) और मुकुंदलाल यादव। दोनो उनके पास मूर्ति बनाना और पेंटिंग करना सीखा करते थे। मुकुन्दलाल जहां अच्छे मूर्तिकार थे वहीं नारायणराव अच्छे पेंटर थे। बाद में दोनों ने एक दूसरे की कला को सीखने का प्रयास किया।यानि मुकुंदलाल, नारायण राव को मूर्ति बनाने सिखाते वहीं नारायण राव मुकुंदलाल को पेंटिंग बनाना सिखाया करते थे। धीरे-धीरे मुकुंदलाल दोनो कला यानी मूर्ति बनाना और पेंटिंग करना सीख गये किन्तु नारायण राव मूर्ति बनाना नहीं सीख पाये। हां ये जरूर हुआ कि रोज-रोज देखकर नारायण राव की पत्नी लक्ष्मीबाई मूर्ति बनाना सीख गयी। फिर लक्ष्मीबाई ने कई वर्षों तक इस काम को व्यवसाय के रूप में अपना लिया । नारायणराव के कई शिष्य हुये- मोहनलाल यादव, नारायण यादव (कुशालपुर) परस पेंटर जिसने गुढियारी में ऐतिहासिक नारियल का गणेश बनाया था। रहीस पेंटर रामनगर, माधव पेंटर, घनश्याम फूटान, हेनुराम सोन, केशव साहू। वहीं मुकुन्द लाल के भी कुछ शिष्य थे जिसमें रेखराज ध्रुव (मंदिर हसौद) नरेश पेंटर, श्याम पेंटर और रामनारायण यादव (पुत्र) इस तरह से प्रदेश मूर्तिकारों की संख्या बढ़ती गयी।
सुखरू लोहार और महरूदाऊ.,सोनी परिवार………………
रायपुर में पहले छोटी मूर्ति रखने का रिवाज था। लोहार चौक में सुखरू लोहार पारंपरिक रूप से गणेश स्थापना करते थे। उनकी मूर्ति हर साल एक जैसी होती थी। कहते हैं वे मूर्ति को विसर्जित कर सजावट सामग्री को आने वाले वर्ष के लिये सुरक्षित रख दिया करते थे। इनकी एक विशेषता थी वे हर वर्ष गणेश मूर्ति के सामने एक छोटी पानी की टंकी बनाते और उसमें सांप जैसे दिखने वाली मछली जिसे स्थानीय बोली में डूड़ुंग मछरी करते हैं डाल देते थे. यही मछली यहां बच्चों का आकर्षण का केन्द्र बनी रहती थी । इसी के ठीक बगल में महरू दाऊ जी गणेश स्थापना करते थे। इनकी विशेषता थी, वे सजावट में चारो ओर कांच से सजावट करते थे इसलिये इसे कांच वाले गणेश भी कहते थे।
रामरतन बेरिया की सजावट ने इतिहास रचा…………….
गणेश सजावट का क्रेज उस समय और बढ़ा, जब रामरतन बेरिया ने गुढियारी पड़ाव में एक विशाल झांकी बनायी । फलों की टोकरी, जूट की बोरियां और पालीथीन से उसने ऐसी झांकी बनायी जो देखने से उभरी हुई पेंटिंग की तरह दिखाई देता था। इस झांकी को देखने पूरे गुढियारी में मेला जैसा माहौल बन जाता था। रामरतन बेरिया रायपुर के ही रहने वाले थे लेकिन वह मुंबई में जाकर फिल्मों का सैट बनाना सीख गये थे ।जिसका खूबसूरत प्रयोग वे गणपति सजावट में करते थे.
हाथ पैर चलाने वाले मूर्ति………………
फिर शुरू हुआ मूवमेन्ट वाली झांकी का सिलसिला, इस झांकी में सजावट में रखे पुतलों के हाथ-पैर चलते थे। इसे देखने को भी भीड़ लगने लगी।
गुफा में गणेश…………..
इसके बार आया झांकी में गुफा बनाने का चलन, गोलबाजार, रामसागरपारा में दो तीन मकानों को मिलाकर ऐसी गुफा बनाते थे कि दर्शनार्थी नदी, पहाड और सबको लांघ कर गणेश प्रतिमा का दर्शन करते थे। गुढियारी में ही नारियल से बने गणेश ने सारे कीर्तिमान तोड दिये। यह अपने ढंग का अनोखा प्रयोग था जो बहुत सफल रहा। इसे देखने गुढ़ियारी में लम्बी-लम्बी कतारें लगती थी। कभी कोई दुर्घटना ना हो जाये इसलिये बाद में प्रशासन ने इसे बंद करा दिया।
क्रेन वाले गणेश जी…………….
जब बड़ी मूर्ति रखने का चलन शुरू हुआ तो गोल बाजार में इतनी बड़ी मूर्ति बनवा लिये कि उसे स्थापित करने के लिये दो-दो क्रेन की सहायता लेनी पड़ी इसलिये इसका नाम पड़ गया क्रेन वाला गणेश।
विवादास्पद समिति…………………
गोलबाजार में ही एक गणेश उत्सव के लिये चंदा लेने के दौरान बड़ा विवाद हो गया। इस समय आयोजकों ने अपने गणेश उत्सव समिति का नाम ही “विवादास्पद गणेश उत्सव समिति” रख लिया।
खंड़पीठ गणेश…………….
कंकालीपारा में तम्बोली परिवार और अन्य लोगों ने बहुत ही आकर्षक प्रतिमा बनवा कर स्थापित किया जो काफी चर्चित रहता था। उन्ही दिनों रायपुर में खंडपीठ स्थापना को लेकर बहुत बड़ा आन्दोलन शुरू हुआ था। समिति वालों ने निर्णय लिया कि जब तक खंडपीठ की मांग पूरी नहीं होती तब तक गणेश विसर्जन नहीं करेंगे। इस तरह गणेशपक्ष समाप्त हो जाने के बाद भी यहां गणेश जी स्थापित रहे। इसी कारण कई वर्षों तक यहां स्थापित गणेश को खंडपीठ गणेश कहा कहते थे।
नारियल का गणेश………….
गुढियारी में परस पेंटर ने वहां की समिति के लिये कई नारियलों से विशाल गणेश जी की प्रतिमा बना दिया। इस गणेश प्रतिमा ने रायपुर के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया। इस गणेश को देखने रायपुर ही नहीं, दूर-दूर से लोग आने लगे और गुढ़ियारी जो तब तक थोक किराना व्यवसाय के लिये जाना जाता था अब नारियल वाले गणेश के लिये भी प्रसिद्ध हो गया ।
बैलगाड़ी में गणेश झांकी………………….
आईये अब गणेश विसर्जन की बात करें। बताते हैं पहले गणेश प्रतिमा का विसर्जन पुरानी बस्ती के प्राचीन खो-खो तालाब में किया जाता था. बैलगाड़ी में केले के पत्तों से सजा कर, झांकी निकाली जाती थी। चूँकि उस समय आज की तरह लाईट्स की व्यवस्था नहीं थी इसलिये बैलगाड़ी के आगे-आगे लोग मशालें लेकर चलते थे और इस तरह गणेश विसर्जन झांकी निकलती थी। बाद में कई वर्षों तक बूढ़ातालाब में मूर्ति विसर्जित होती रही। जब यहां का पानी गंदा होने लगा तो प्रशासन ने निर्णय लिया कि मूर्तियों का विसर्जन खारून नदी में किया जायेगा । कुछ साल खारून नदी में पुल के उपर से गणेश मूर्तियों को ढकेल कर विसर्जित किया जाता था। बाद में यहां भी फिसलने वाली मशीन बनायी गयी। कहतें हैं यह सलाह बढ़ईपारा के रामनाराण ने ही प्रशासन को दी थी । जब नदी का पानी भी गंदा होने लगा तब अब यहां कुंड बना कर गणेश मूर्ति विसर्जित की जाती है।