दिव्य कल्पतरु है श्रीमद्भागवत कथा – पं० दिनेश शर्मा
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
सारंगढ़ – भागवत में चार अक्षर हैं इसका तात्पर्य है कि भा से भक्ति , ग से ज्ञान , व से वैराग्य और त से त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे उसे हम भागवत कहते हैं। श्रीमद्भागवत कथा तो दिव्य कल्पतरु है। यह अर्थ , धर्म , काम के साथ – साथ भक्ति और मुक्ति प्रदान करके जीव को परम पद प्राप्त कराता है। श्रीमद्भागवत केवल पुस्तक नही बल्कि साक्षात श्रीकृष्ण स्वरुप है। इसके एक – एक अक्षर में श्रीकृष्ण समाये हुये है। इसकी कथा सुनना समस्त दान , व्रत , तीर्थ , पुण्यादि कर्मो से भी बढ़कर है। भगवान की कथा वैराग्य , ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग प्रशस्त करती है।
उक्त बातें बड़े मठ में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानयज्ञ के दूसरे दिन कथाव्यास दिनेश शर्मा ने यजमान श्रीमति पूर्णिमा बसंत तिवारी सहित श्रद्धालुओं को कथाश्रवण कराते हुये कही। महाराजश्री ने अमर कथा का वर्णन करते हुये बताया देवर्षि नारदजी के कहने पर पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि उनके गले में जो मुंडमाला है वह किसकी है तो भोलेनाथ ने बताया वह मुंड किसी और के नहीं बल्कि स्वयं पार्वतीजी के हैं। हर जन्म में पार्वती जी विभिन्ना रूपों में शिव की पत्नी के रूप में जब भी देह त्याग करती तब शंकरजी उनके मुंड को अपने गले में धारण कर लेते। इस पर पार्वती ने हंसते हुये कहा हर जन्म में क्या मैं ही मरती रही , आप क्यों नहीं ? शंकरजी ने कहा हमने अमर कथा सुन रखी है। पार्वती ने कहा मुझे भी वह अमर कथा सुनाईये , तब शंकरजी उनको अमर कथा सुनाने लगे। शिव-पार्वती के अलावा सिर्फ एक तोते का अंडा था जो कथा के प्रभाव से फूट गया उसमें से श्रीशुकदेव जी का प्राकट्य हुआ कथा सुनते सुनते पार्वती जी सो गई वह पूरी कथा श्री शुकदेव जी ने सुनी और अमर हो गये। शंकर जी सुकदेवजी के पीछे उन्हें मृत्युदंड देने के लिये दौड़े। शुकदेवजी भागते भागते व्यासजी के आश्रम में पहुंचे और उनकी पत्नी के मुंह से गर्भ में प्रविष्ट हो गये। बारह वर्ष बाद श्री सुकदेव जी गर्भ से बाहर आये , इस तरह श्रीशुकदेवजी का जन्म हुआ। वहीं राजा परीक्षित के जन्म की कथा श्रवण कराते हुये आचार्यश्री ने कहा कि महाभारत युद्ध के पश्चात जब राजा परीक्षित माता के गर्भ में थे , उसी समय अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग परीक्षित की मां उत्तरा के गर्भ पर किया। असहनीय दर्द से कराहती उत्तरा ने जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण को पुकारा , उन्होंने उत्तरा के गर्भ में प्रवेश कर स्वयं उस बालक की ब्रह्मास्त्र से रक्षा की। इनके जन्म लेने पर विद्वानों ने नवजात शिशु का नाम परीक्षित रखा क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं ही इस बच्चे की मां के गर्भ में रक्षा की थी। राजा बनने पर परीक्षित ने कलयुग को दंड देने का प्रसंग सुनाते हुये व्यासाचार्य ने बताया कि कलयुग जब राजा परीक्षित की शरण में आकर अपने रहने के लिये स्थान मांगा तो राजा ने चार स्थान दिये। पहला स्थान जुआ क्रीड़ा , दूसरा शराब खाना , तीसरा वैश्य स्थल दिये। तीनों स्थानों के बारे में सुनकर कलयुग ने राजा परीक्षित से कोई अच्छा स्थान प्रदान करने को कहा। इस पर राजा द्वारा भूल से उनके मुख से चौथे स्थान का नाम सोना निकल गया। कुछ समय पश्चात राजा ने अपने पूर्वजों के मुकुटों को देखना चाहा तो एक मुकुट बहुत सुंदर था जिसको धर्मराज युधिष्ठिर ने छिपा कर रखा था। यह मुकुट जरासंध का था जिसको भीम छीन कर लाया था। राजा ने जैसे की उस सोने के मुकुट को पहना , कलयुग उसकी बुद्धि पर सवार हो गया। राजा जंगल में शिकार करते भूख प्यास से व्याकुल शमीक ऋषि के आश्रम पहुंचा। ऋषि उस समय ध्यान में लीन थे , राजा ने उन्हें पुकारा तो ऋषि का ध्यान उन पर नहीं गया। राजा को लगा कि ऋषि ने जान बूझकर उनका अपमान किया है , क्रोध में राजा की बुद्धि बिगड़ गई और उसने एक मरे को सांप को ऋषि के गले में डाल दिया। ऋषि के पुत्र को जैसे ही इस बारे में पता चला उसने तुरंत राजा को श्राप दे दिया कि उसकी मृत्यु सात दिनों के अंदर तक्षक नाग के डसने से हो जायेगी। जब राजा परीक्षित को श्राप का पता चला तो उन्हें बहुत पछतावा हुआ , उन्होंने राज्य में आये शुकदेव मुनि से इसका उपाय पूछा। इस पर मुनि शुकदेव ने राजा परीक्षित की मुक्ति के लिये सात दिन भागवत कथा सुनाई। जिसे सुन राजा परीक्षित भगवान की भक्ति में लीन हो गये , सात दिन पूरे होते ही ऋषि के श्राप के अनुसार तक्षक नाग ने आकर परीक्षित को काट लिया। भगवान की भक्ति में लीन राजा परीक्षित को इसका पता तक नहीं चला और भागवत कथा के प्रभाव से उन्हें मुक्ति प्राप्त हो गई।उल्लेखनीय है कि लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण की असीम अनुकम्पा से श्रीमती कुशी बाई तिवारी के वार्षिक श्राद्ध पर उनके एवं पूर्वजों के मोक्ष कामना हेतु सत्संग भवन , बड़े मठ मंदिर सारंगढ़ में पं० दिनेश कुमार शर्मा (अधिवक्ता) के मुखारविंद से 23 जनवरी प्रतिदिन दोपहर तीन बजे से श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानयज्ञ का आयोजन किया गया है। कथा के दूसरे दिन सूतजी से ऋषियों के प्रश्न , परीक्षित जन्म पर आचार्य श्री ने विस्तृत प्रकाश डाला। वहीं आज 25 जनवरी को शुकदेव आगमन , वराह अवतार , ध्रुव चरित्र , 26 को भरत चरित्र , नरसिंह अवतार , 27 को वामन अवतार , श्रीराम जन्म , श्रीकृष्ण जन्म , 28 को श्रीकृष्ण लीला , गोवर्धन पूजा , 29 को रासलीला , रूखमणी विवाह , 30 को सुदामा चरित्र , उद्धव संवाद , चढ़ोत्री , 31 जनवरी को तुलसी वर्षा , हवन , पूर्णाहुति एवं सहस्त्रधारा के साथ कथा का समापन होगा। तिवारी परिवार ने सभी भक्तों से अधिक से अधिक संख्या में कथास्थल पहुंचकर श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण लाभ लेने की अपील की है।